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लेखनी कहानी -13-Feb-2024

      भारत मां  के वीर  सपूत

    हमारे देश में अनेकानेक  वीर सपूत  हुए  हैं जिन्होंने भारत  माता के लिए  अपने प्राणौ का वलिदान दिया है। 
        "अगर मेरे खून को साबित करने से पहले मेरी मौत हो जाती है, तो मैं वादा करता हूं कि मैं मौत को भी मार दूंगा।" ऐसा कहने वाले थे कैप्टन  मनोज  कुमार  पाण्डेय जिनको मरणोपरांत  परमवीरचक्र से सम्मानित  किया गया था।

    कैप्टन मनोज कुमार पाण्डेय ने जो कहा, वह करके भी दिखाया. खालूबार टॉप पर वापस कब्जा करने के लिए उन्होंने जिस जोश, जज्बे और जुनून के साथ दुश्मन पर हमला किया, उससे उन्होंने दुश्मन के हर हथियार को बोना साबित कर दिया। 

     कैप्टन मनोज पाण्डेय  का जन्म उत्तर प्रदेश में सीतापुर जिले के  रुधा नाम के एक गांव  में हुआ था।   उनका जन्म 25 जून 1975 को यहां एक ब्राह्मण परिवार में  हुआ  था।  मनोज पाण्डेय का शुरुआती बचपन गांव में गुजरा था। लेकिन बाद में उनका परिवार लखनऊ आ गया।  वह बचपन से ही बहुत तेज थे। उन्होंने सैनिक स्कूल से शिक्षा ली और आगे चलकर सेना में कैरियर बनाने में उन्हें आसानी हुई।

  उन्होंने सैनिक स्कूल से ही स्वयं को सेना के लिए तैयार करना शुरू कर दिया था। 12वीं कक्षा पास करने के  बाद जब वह NDA परीक्षा में पास हुए तो इंटरव्यू में उनसे खास प्रश्न पूछा गया। ये प्रश्न पूछा गया कि तुम  सेना में क्यों जाना चाहते हो ? 

   तब मनोज पाण्डेय ने इस प्रश्न का उत्तर दिया ,"  परमवीर चक्र जीतने के लिए। "

       मनोज  कुमार  पाण्डेय  ने देश के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर किया और उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाजा गया।

 NDA में चुने जाने के बाद मनोज ने पुणे के पास खड़कवासला में मौजूद राष्ट्रीय रक्षा अकादमी से ट्रेनिंग ली थी। ट्रेनिंग के बाद मनोज कुमार पाण्डेय को 11 गोरखा रायफल्स रेजिमेंट में तैनाती मिली। उनकी रेजिमेंट उस समय जम्मू-कश्मीर में अपनी सेवाएं दे रही थी।

 उन्होंने शुरू से ही हमले की योजना बनाना, हमला करना और गोरिला युद्ध में दुश्मन को मात देने की लगाएं सीखना शुरू कर दिया। कारगिल भेजे जाने से पहले उन्होंने करीब डेढ़ साल तक सियाचिन में ड्यूटी दी थी और अब शांतिकाल में उनकी तैनानी पुणे होने जा रही थी। लेकिन कारगिल में घुसपैठ की खबरों के बीच उन्हें बटालिक सेक्टर जाने को कहा गया।

      कैप्टन मनोज पाण्डेय बटालिक जाने की खबर से निराश नहीं हुए, बल्कि वह ऐसे खुश थे। जैसे उन्हें इसी मौके का इंतजार था। उन्होंने बड़ी ही बहादुरी से अपनी टीम का नेतृत्व किया। पाकिस्तानी घुसपैठियों के साथ करीब दो महीने के संघर्ष में उन्होंने कुकरथांम, जूबरटॉप जैसे कई चोटियों से दुश्मन को मार भगाया।

   3 जुलाई 1999 को वह खालुबार चोटी पर कब्जा करने के लिए आगे बढ़ रहे थे। उनके आगे बढ़ने पर दुश्मन को उनकी आहट हो गई और घुसपैठियों ने पहाड़ियों के पीछे छिपकर अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी।दुश्मन की तरफ से फायरिंग होते देख कैप्टन मनोज पाण्डेय ने रात होने का इंतजार किया।

   अंधेरा होने पर उन्होंने अपने साथियों से बात करके दो अलग-अलग रास्तों से आगे बढ़ने की रणनीति बनाई। उनकी यह रणनीति काम कर गई और पाकिस्तानी घुसपैठिए उनके झांसे में आ गए। कैप्टन मनोज पाण्डेय को मौका मिला और उन्होंने दुश्मन के बंकरों पर हमला करके उन्हें उड़ाना शुरू कर दिया।

  इससे पहले कि दुश्मन कुछ समझ पाता, तीन बंकर नेस्तनाबूत हो चुके थे।अभी उनका काम पूरा नहीं हुआ था, जैसे ही उन्होंने चौथे बंकर को ध्वस्थ करने के लिए कदम आगे बढ़ाए ही थे कि  पाकिस्तानी घुसपैठियों ने उन पर गोलियां बरसा दीं। कैप्टन मनोज पाण्डेय लहुलुहान हो गए। उनके साथियों ने उन्हें कवर दिया और आगे न बढ़ने को बी कहा, लेकिन वह कहां मानने वाले थे।

  वह चाहते थे कि वह स्वयं ही खालुबार टॉप पर तिरंगा लहराएं। कैप्टन मनोज पाण्डेय के शहीद होने के बाद उनके साथियों ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को दौड़ा-दौड़ाकर मारा। इस तरह खालूबार टॉप पर एक बार फिर तिरंगा लहरा दिया गया। उनकी शहादत  काम आई।

आज की दैनिक प्रतियोगिता हेतु। नरेश शर्मा " पचौरी "

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4 Comments

Mohammed urooj khan

15-Feb-2024 01:09 AM

👌🏾👌🏾

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Sushi saxena

14-Feb-2024 06:17 PM

Very nice

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Rupesh Kumar

13-Feb-2024 11:00 PM

Nice

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